कस्तूरबा गांधी: सफलता के पीछे रहा अहम योगदान, बापू का हर कदम पर दिया साथ

एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पीछे भी एक ऐसी ही महिला थीं। हम बात कर रहे हैं उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी की। जिन्होंने मरते दम तक गांधी का साथ दिया। चाहे जेल की यातनाएं सहना हो, गिरफ्तारी देनी हो या महिलाओं को आंदोलनों में साथ लाना हो, कस्तूरबा गांधी ने उनका हमेशा साथ दिया।
आज कस्तूरबा गांधी की पुण्यतिथि है। 22 फरवरी 1944 को उन्होंने अपना सत्याग्रह आंदोलन जारी रखते हुए देश को अलविदा कह दिया।
जानिए कस्तूरबा गांधी के बारे में
कस्तूरबा गांधी की बात की जाए तो उनका जन्म 11 अप्रैल 1869 को गुजरात के काठियावाड़ के पोरबंदर में हुआ था। कस्तूरबा, महात्मा गांधी से उम्र में छह महीने बड़ी थीं। उनके पिता गोकुलदास मकनजी साधारण स्थिति के व्यापारी थे। एक छोटी सी उम्र में ही उनका महात्मा गांधी से रिश्ता जुड़ गया। करीब सात साल की उम्र में महात्मा गांधी के साथ उनकी सगाई हो गई और 13 साल में दोनों का विवाह हो गया।
कदम-कदम पर दिया बापू का साथ
महज 13 साल की उम्र में ही शादी होने के बाद केवल 3 साल तक बापू के साथ रहीं। उन्हें गृहस्थ जीवन का सुख कम ही मिला। 1888 में गांधीजी इंग्लैंड चले गए। फिर वहां से कुछ दिन बाद आए तो अफ्रीका चले गए। इस तरह से 12 साल बाद जब गांधी जी देश वापस आए तो उनकी अहिंसा वाली लड़ाइयों में बा (कस्तूरबा गांधी) भी साथ हो लीं। बापू कोई भी उपवास रखते तो बा भी रखतीं। बापू जेल जाते तो बा भी जेल जातीं।
1932 में जब यरवदा जेल में बापू ने हरिजनों को लेकर उपवास शुरू कर दिया तो साबरमती जेल में बंद बा व्याकुल हो गईं। तब उन्हें भी यरवदा जेल भेजा गया। वहीं, दक्षिण अफ्रीका में 1913 में एक ऐसा कानून पास हुआ। इन कानून के तहत जिन विवाहों का पंजीकरण नहीं होगा वह अवैध माने जाएंगे। इस पर गांधी जी ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। उन्होंने महिलाओं का आवाह्न किया।
इस सत्याग्रह के बाद अधिकारियों को उनकी बात माननी ही पड़ी। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ दिया। वहीं, 1942 में जब बापू गिरफ्तार कर लिए गए तो महाराष्ट्र की शिवाजी पार्क में, जहां बापू भाषण दिया करते थे वहां कस्तूरबा ने भी भाषण देने प्रण किया।
ऐसे हुई कस्तूरबा गांधी की मौत
उनके शिवाजी पार्क पर पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वह पहले से ही अस्वस्थ चल रही थीं। 2 दिन बाद उन्हें पुणे के आगा खां महल भेज दिया गया, जहां बापू पहले से कैद थे। वहां बा की तबीयत धीरे-धीरे ढलती गई और 22 फरवरी 1944 को उन्होंने देश को अलविदा कह दिया।